जीते बाँस … मरते बाँस … चलते बाँस के बीच मुजफ्फरपुर में हुए 10 वर्ष के विकास में हिचकोले खा रहे ग्रामीण।
मुजफ्फरपुर में एक इलाका ऐसा जहाँ मुर्दे को ढोने वाले बाँस का निसेनीनुमा ढांचा से बनाया जाता चचरी पूल.
एक हीं परिवार के सांसदी में भी नहीं बदल सका इलाके की तस्वीर। आज भी ग्रामीणों के द्वारा बनाया गया चचरी पूल अरथी एक्सप्रेस वे बना हुआ है. इस पूल पर अक्सर दुर्घटना में लोग घायल होते रहे. क्षेत्र का नेतृत्व करने वाले दावों की बैसाखी पर वोट बटोरते रहे.

अरथी एक्सप्रेस वे के सहारे जिंदगानी
दशकों बाद बाढ़ की त्रासदी झेल रहे ग्रामीण चचरी के सहारे आवागमन पर निर्भर है. करीब डेढ़ लाख की आबादी प्रभावित है, यह ग्रामीणों की संख्या वही है, जो अपना बहुमूल्य मत दे कर संसद भवन तक भेजे अपने नेता को सांसद बना कर.
इस इलाके में बागमती प्रोजेक्ट की वजह से बागमती से प्रभावित हो करीब 19800 की आबादी विस्थापितों की जिंदगी जीने को मजबूर हो गयी थी. हद तो ये है की जिस इलाके में मत मांगने के लिए घूम रहे हैं नेता जी उसी इलाके में करीब 11 हजार 980 की बड़ी आबादी आज भी बागमती की बीच घिरे रहते हुए बागमती के गोद में रहने को मजबूर हैं.

अरथी एक्सप्रेस वे’ पर चढ़ … जाते 27 बूथों पर मतदाता
मुजफ्फरपुर लोकसभा क्षेत्र में आने वाला 42 पंचायत औराई विधान सभा में है. इस इलाके में मतदाताओं की संख्या लोक सभा चुनाव में अहम होता है. औराई में 3 लाख 24 हजार 244 मतदाता लगभग हैं. महिला मतदाताओं की बात करें तो एक लाख 57 हजार 954 हैं वहीं पुरुष कुछ ही ज्यादा 1 लाख 72 हजार से ज्यादा हैं. हद तो ये है कि करीब 27 बूथों पर अपना मत देने जनता इसी अरथी एक्सप्रेस वे का सहारा लेते हुए चचरी पूल पर हिचकोले खाते पहुँचते हैं. इन मतदाताओं में हर बार चुनाव में एक उम्मीद होता है अगली बार नेता जी जरूर चचरी पूल से मुक्ति दिला देंगे.

नेता जी ने नहीं किया पहल – सरकार ने बंद किया विस्थापित प्रायोजित योजना
नेता जी तो लगातार दो बार सांसद बन गए लेकिन इलाके की तस्वीर बदली नहीं। अब हालत ये हो गए पार्टी बदल जब नेता जी इलाके में पहुँच रहे है तो भीड़ जमा होती है और कुछ ही देर में 25 % ही सुनने के लिए रुकते हैं.
बागमती नदी के तटबंध के अंदर एक दर्जन विस्थापित गाँव में अतरार, हरनी टोला, महेश्वारा, चंहुटा, बभनगावां पश्चिमी, बड़ा खुर्द, बाड़ा बुजुर्ग, चैनपुर, मधुबन प्रताप, कश्मीरी टोला ऐसे इलाके में तटबंध निर्माण से विस्थापित हैं, बाँस और बाँस बल्ली से खुद से बना ग्रामीण आवागमन कर रहे हैं.
देश में जहाँ एक से एक एक्सप्रेस वे का निर्माण हो रहा है, कहीं समुन्द्र के अंदर टनल निर्माण कर सड़क बना दिया गया कहीं पहाड़ के बीच सड़क निर्माण करा दिया गया, उसी सरकार में मुजफ्फरपुर का नेतृत्व करने वाले ने बाँस से बने इस अरथी एक्सप्रेस वे के भरोसे जनता को छोड़ दिया उसी के हाल पर