जुगाड़ में थे थानेदार बनने को… और पहुंच गए जेल में ‘बोली की गोली’

pmbnewsweb
2 Min Read
व्यंग्य के साथ बोली की गोली में लेकर आए हैं एक दरोगा जी की सच्ची कहानी। मकसद है की व्यंग्य के माध्यम से जीवन के इस आपाधापी वाले समय में विसंगतियों, खोखलेपन को सामने लाना।
उत्तर बिहार के एक जिला में थानेदार बनने की चर्चा इन दिनों जिला आदेश निकलने से पूर्व ही हो जाती है. कई थानों में जिला आदेश निकलने से पूर्व उस इलाके में माफिया और भूमाफिया के बीच नामों के चर्चा शुरू हो जाती है, पोस्टिंग के बाद वह नाम सामने आता है तो माना जा सकता है की माफियाओं का तंत्र और बनने वाले कोतवाल का रिश्ता कैसा होता है. कई कोतवाल पश्चिमी क्षेत्र के एक जेएसआई से परेशान थे उसकी हरकत को ले कर. उन सूत्रों की माने तो कोतवाल शर्मिंदगी झेलते थे. एक समय ऐसा आया वह बन गए कोतवाल।
शहर के चर्चित थाना में एक जे एसआई की पोस्टिंग थी, इलाके में काफी चर्चित था, थाना वही जहाँ दो दशक पूर्व पेट्रोल बम से हमला हुआ था. जी वही थाना है जहाँ के इंस्पेक्टर कोतवाल जो थे उन्हें थाना कक्ष की जगह जेल के काल कोठरी काफी दिनों तक मिला था.
जेएसआई ऐसा कोतवाल के आदेश का भी नहीं करता था पालन, कुछ दिन पूर्व थाना में एक पुलिस पदाधिकारी के रिश्तेदार को पिटाई कर दिया, या यूँ कहें कूट दिया, मुंह चेहरा फार दिया, शिकायत आई जी तक पहुंची और जिला में कार्रवाई नहीं हुआ, दोषी दरोगा थानेदार बनने के लिए काफी प्रायसरत रहे, कई जगहों में चर्चा भी होती रही की बड़ा बाबू बन रहे है, इन्हीं चर्चाओं में वर्दी वाले के रिश्तेदार को हीं कूट दिया,
कहते हैं पाप का अंत होता है, जिला में कार्रवाई भावी कोतवाल पर नहीं हुई, जिसके साथ सात फेरे लिए थे उसी के हत्या के आरोप में पहुंच गए जेल. जेल से भी छूट हीं जाएंगे और फिर जुगाड़ से कोतवाल भी बन जाएंगे। वहीं सवाल तो तब भी उठेगा की ऐसे लोग कोतवाल की कुर्सी तक कैसे पहुँच जाते हैं
Share This Article