बिहार के कई जिलों के साथ मुजफ्फरपुर के रास्ते पशुओं की तस्करी बड़े पैमाने पर हो रही है. तस्कर मुजफ्फरपुर के कच्चे रास्ते और ग्रामीण इलाके वाली सड़क से रात के अँधेरे में तस्करी को अंजाम दे रहे हैं. हद तो ये है तस्कर वैसे इलाकों को चुनते हैं, जहाँ कोई बड़ा थाना न हो. इसके लिए तस्कर ओपी वाले ग्रामीण इलाके को चुनते हैं. पिछले दिनों रात के अँधेरे में पानापुर ओपी क्षेत्र में ऐसे ही ट्रकों को पकड़ा गया था ग्रामीणों द्वारा. दिन के उजाले के साथ तस्कर मुख्य सड़क पर आ जाते हैं. अक्सर मुजफ्फरपुर के मुख्य सड़क पर स्थित थाना क्षेत्र में ग्रामीण या संगठन के द्वारा ऐसे कंटेनर और ट्रक को पकड़ कर पुलिस के हवाले किया जाता है. कुछ दिन पूर्व सदर थाना क्षेत्र में ऐसे ही कंटेनर को स्थानीय लोग पकड़ कर पुलिस के हवाले किए थे

मुजफ्फरपुर से कई बड़े तस्कर जुड़े हैं सिंडिकेट में
मुजफ्फरपुर के KMP, ब्रह्मपुरा, मिठनपुरा, मोतीपुर, कांटी, सकरा, मनियारी, बोचहां सहित अन्य कई थाना क्षेत्र में पशु तस्कर गिरोह के सदस्य सक्रिय हैं. अंदरखाने पुलिस महकमे में भी स्थानीय थाना स्तर की बात की जाए तो सेटिंग रहती है, बोचहां में कंटेनर पकड़ा गया था लेकिन किसी तस्कर के खिलाफ ठोस कार्रवाई सामने नहीं आने से, ये साफ हैं अंदरखाने चल रहे बड़े खेल से इंकार नहीं किया जा सकता. गायों और अन्य मवेशियों की तस्करी के लिए तस्कर रोड मैप तैयार किए हुए हैं, रोड मैप के लिए नए – नए तरीके अपनाते हुए ओपी क्षेत्र और ग्रामीण इलाके के छोटे रास्तों को अपनाते हैं, तस्कर को ये जानकारी होती है की कहाँ – कहाँ रुकावट आ सकती है. आने वाले रुकावट को कैसे दूर किया जाना है उसके लिए पहले से मास्टर प्लान तय किया हुआ है. तय किए गए मास्टर प्लान से कभी भी ग्रामीण क्षेत्र हो या फिर जिला का शहरी क्षेत्र वहां पुलिस के संज्ञान में तब ही आता है जब कंटेनर या ट्रक का दुर्घटना हो या फिर हिन्दू संस्था से जुड़े कार्यकर्ता या फिर ग्रामीण पकड़ते हैं पशुओं से भरा कंटेनर या ट्रक को

हजारों करोड़ का गाय और गोमांस की तस्करी
भारत में हजारो करोड़ की गोमांस और गाय की तस्करी होती है. सिर्फ बिहार की बात करें तो यहाँ भी अनुमानित एक हजार करोड़ से ऊपर की तस्करी होती है, सीबीआई के जांच में सामने आया था कि वर्ष 2016 में अनुमानित फायदा इस तस्करी से इंटरनेशनल लेवल पर 15 हजार करोड़ से ऊपर हुआ था. तस्करो के आंकड़ों पर गौर करें तो एक लाख दस हजार पशुओं को सिमा पर बीएसएफ ने जब्त किया था और मात्र दो वर्ष में 2016 में ये आंकड़ा एक लाख 70 हजार पहुंचा सिर्फ जब्ती का. ऐसे में माना जा सकता है की 2016 तक जो जब्ती के आंकड़े सामने आ गए अब 2023 में किस पैमाने पर तस्करी का संख्या बढ़ गया होगा। गाय के बीफ का ही नहीं चीन में और गाय के कई अंगों की अलग अलग कीमत तय है, प्रोसेसिंग के बाद बने बीफ की कीमत के अतरिक्त पूंछ के बाल, पैर के निचले हिस्से के साथ हड्डियों की भी तस्करी हो रही है

मुजफ्फरपुर से बंगाल, बांग्लादेश और चीन से जुड़ा है तार
बिहार के कई जिलों में तस्कर सक्रिय है तो कई जिलों में भैंस के मीट प्रोसेसिंग के नाम पर गौ मांस का फैक्ट्रियों के प्रोसेसिंग कर बंगला देश से ले कर चीन तक निर्यात किए जाते हैं AC कंटेनर में मांस। ये मांस बोनलेस बना कर माईनेस 40 डिग्री पर केमिकल प्रक्रिया से गुजरने के बाद किया जाता है पैकिंग। बिहार से पश्चिम बंगाल तक फैक्ट्री का संचालन हो रहा है, भारत – बांग्लादेश सीमा के रास्ते हर वर्ष बड़ी संख्या में न सिर्फ मवेशिओं की तस्करी हो रही है, इसी रास्ते बिहार और बंगाल में तैयार किए जा रहे बीफ की तस्करी हो रही है. पूर्व के अनुसंधान की बात करें तो सीबीआई के जांच मे आया था कि 5% पांच प्रतिशत ही बीएसएफ जवान तस्करी के पशुओं को जब्त कर पाते हैं. बॉर्डर की बात तो अलग है, राज्यों और जिलों से हो रही तस्करी पर लगाम लगाने में पूरी तरह से पुलिस विभाग विफल है. वहीं सरकारी स्तर पर बात की जाए तो मीट प्रोसेसिंग के लिए कई यूनिट चलाए जाने वालों को परमिट भी जारी किया जाता है