आधुनिक हो रही पुलिस टीम में इसी आधुनिकता का पुलिस विभाग में एक शब्द निकला टॉक up. सुनने में अटपटा लग रहा होगा लेकिन ये अटूट सत्य है, कोई कोतवाल बोलते हैं कुछ नहीं बोलते टॉक अप का राज। अक्सर जिलों में इससे हो कर गुजरते हुए कोतवाल बनते हैं। कहीं कहीं नहीं हुआ तो उसका रास्ता अलग होता है, जिसे आधुनिकता के साथ पोस्टपेड कहा जा सकता है।
ऐसे मामले अक्सर सरकार के विपक्षी पार्टी उठाती है। या फिर जो खासमखास कोतवाल मित्रता में सफर के दौरान हुए खर्च पर जिक्र कर लेते हैं। पुराने वक़्त की बात करें तो 1994 के बाद 2009 तक पब्लिक डोमेन में कम ही इसकी चर्चा होती थी। लाजमी है गोपनीयता गुप्त रखी जाती थी।
2009 के बाद गोपनीयता भंग हुई, फिर भी कुछ हद तो टॉक अप की गोपनीयता बनी रही। 2016 के बाद आने वालों ने न सिर्फ गोपनीयता को भंग किया, इस खेल में कौन कौन टॉक अप के बूथ हैं जहां रिचार्ज या पोस्टपेड होता है उसका भी नाम पब्लिक डोमेन में आने लगा।
हद तो ये है उछल कूद में माहिर टॉक अप की जानकारी फरियादियों को दे अपना रिचार्ज भी हो जाते हैं।
बात एक जिले के माल बाबा की करें तो 500 एक Verification और 50 से 100 मून ## का होता था तो माल बाबा चीनी का दाम पहले और अब के पूछ रेट दोगुना कर दिए थे।
आज के समय मे ही बात करें तो जिस तरह की चर्चाएं बाजार में है बिहार के उससे साफ है वक़्त बदला है और सब कुछ पब्लिक डोमन में।
2009 के एक दरोगा जी एक रीडर को 6 लाख का टॉक अप राशि दिए, टॉक अप की राशि की जानकारी भी कप्तान को नहीं थी। न हीं उन्होंने कोई डिमांड किया।
टॉक अप की राशि के लिए गए कर्ज, ब्याज के दबाव ने एक ओपी में खुद को गोली मार आत्महत्या कर लिया। बात आग की तरह फैली, मृतक दरोगा की पत्नी ने लिखित रूप से टॉक अप की राशि खोलते हुए आत्महत्या का कारण बताया।
अक्सर टॉक अप बूथ के संचालक कुछ खेल ऐसा कर देते हैं जो अधिकारी से दूर होता है।
ऐसे इन बातों पर भरोसा करें तो टॉक अप में बड़ी ताकत है। निष्क्रिय भरष्टाचारी भी टॉक अप करा सीम रिचार्ज में सफल हो जाते हैं
(विपक्ष के आरोप, दरोगा के आत्महत्या के बाद आए पत्र पर आधारित)