मुजफ्फरपुर में नए गिरोह से मिल रही पुलिस को चुनौती ! जिला में कैसे अपराधी ?

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मुजफ्फरपुर जिला में अपराध नियंत्रण एक बड़ी चुनौती होती है पुलिस के लिए, ख़ास कर तब जब हत्या, छिनतई, लूट, डकैती ऐसे अपराध अलग अलग थाना क्षेत्र में लगातार घटित होने लगते हैं. घटना को अंजाम देने के बाद CCTV में कई अपराधकर्मी कैद भी होते हैं फिर भी थाना स्तर पर कोतवाल के पास पर्याप्त इनपुट नहीं रहने की वजह से अपराधी बेख़ौफ़ हो कर दूसरी घटना को अंजाम देने में जुट जाते हैं. जिला के विशेष टीम डीआईयू के पास एक घटना के बाद दूसरी और तीसरी घटना का बोझ बढ़ता चला जाता है. थानावार घटनाओं की संख्या को ले कर सामने लाया जाए तो अधिकांश थाना क्षेत्र में ऐसी घटनाएं पिछले चार माह में घटित हुई है जिसमे पुलिस के हाथ खाली हैं. जिला में पुलिस कप्तान के रूप में नए एसएसपी के आगमन के बाद जिला में इंस्पेक्टर और दरोगा जो थानेदार के रूप में पदस्थापित थे उनमे कुछ बदलाव किए गए फिर भी अपराध पर लगाम नजर नहीं आया. जिला के नगर क्षेत्र में एसएसपी के तबादला से पूर्व नगर डीएसपी पदस्थापित हो चुके थे लिहाजा काफी हद तक पूर्व के एसएसपी के कार्यकाल का अनुभव मिला, नए एसएसपी के पास टीम वही है फिर भी टीम वर्क में कहीं न कहीं समीक्षा की जरूरत नजर आ रहा है. टीम में कॉर्डिनेशन की कमी सामने दिख रही है
CCTV FILE
जिला में कैसे अपराधी ? पुलिस के साथ रह देते चकमा 
मुजफ्फरपुर जिला ऐसा हैं जहाँ सिर्फ मुजफ्फरपुर के अपराधी अपराध नहीं करते, इस जिला में सीतामढ़ी, समस्तीपुर, वैशाली, शिवहर, मोतिहारी सहित अन्य जिला के अपराधी लोकल अपराधी के साथ मिल कर अपराध की घटना को अंजाम देते रहे हैं. अपराध करने वाले अपराधी मुजफ्फरपुर के किसी खास इलाके से न हो कर जिला के बाहर सहित जिला के अलग – अलग प्रखंड क्षेत्र के होते हैं. हाल के दिनों में कारित हुए अपराध पर नजर डालें तो कहीं न कहीं से अपराधी गिरोह का कोई न कोई सदस्य मुखबिर के रूप में थाना से जुड़ कर पुलिस के गतिविधि की जानकारी गिरोह तक पहुंचता है. शहरी क्षेत्र के ऐसे ही माफिया को गिरफ्तार कर एक थानेदार ने जेल भेजा है. हद तो ये है, इस अपराधी को जब कोर्ट में न्यायिक हिरासत में पेश करने पुलिस टीम पहुंची तो हथकड़ी सरका फरार हो गया, मौके पर तैनात पुलिस पदाधिकारी के सक्रियता के कारण पकड़ा गया, सूत्रों की माने तो जिस थाना क्षेत्र से जेल गया उसी थाना क्षेत्र में समानान्तर थाना चलाता था, कई जगहों पर सट्टा का खुद का कारोबार था और शराब सिंडिकेट से भी जुड़ कर जबरदस्त उगाही पुलिस के नाम पर करता आ रहा था, तथाकथित मुखबिर को जेल भेज निसंदेह कोतवाल ने थाना से खबर लिक होने से बचाया, साथ ही इलाके में बहुत हद तक अपराध पर भी नियंत्रण में कामयाबी मिली
आखिर कहाँ विलुप्त हो गए ? वैसे पुलिस पदाधिकारी 
जिला में पिछले कुछ वर्षों में अपराधी से मोर्चा लेने वाले कई चेहरे थे. ऐसे चेहरे जो कई मुठभेड़ का सामना किए, बैंक लूट, एजेंसी लूट ऐसे घटना को रोकने में कामयाब रहे, कई पुलिस पदाधिकारी जिला से ट्रांसफर हो गए या जो हैं वह अदृश्य हो गए हैं. वर्तमान समय में, पूर्व के कार्यकाल में तत्कालीन एसएसपी के साथ काम करने वाले कई पदाधिकारी आज नजर नहीं आ रहे हैं. अपराध पर नियंत्रण के लिए पूर्व के कार्यकाल में भी कई कोतवाल सिर्फ तस्वीरों में सामने होते थे, डिटेक्शन के लिए विशेष टीम ही आगे रहती थी जो तस्वीरों में नहीं होते थे, आज भी छोटे – छोटे गिरोह बना अपराध करने वाले अपराधी की सही कुंडली कई थानेदारों के पास नहीं है, जिसका फायदा अपराधी उठा रहे हैं और एक – एक कर कई घटनाओं को अंजाम देते चले जा रहे हैं. कहीं न कहीं जिला में आपसी कॉर्डिनेशन की कमी है उसे दूर करने की जरूरत है. जिला में हाल में बने कुछ कोतवाल थाना के अंदर या बाहर स्थाई ब्रोकर के झांसे में हैं जिससे इलाके में पुलिस की तस्वीर धूमिल हो रही है. अपराध नियंत्रण ऐसे कई वजहों से एक चुनौती बना हुआ है
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