बकरी की वजह से नेता जी को लगा चुना – 50 के बाद हुआ सुनवाई पैरवी “बोली की गोली”

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“बोली की गोली” व्यंग्य साहित्य की एक विधा है जिसमें उपहास, मज़ाक (लुत्फ़ ) और इसी क्रम में आलोचना शब्दों से होती है   … बोली की गोली में हम सिर्फ आलोचना पर भरोसा नहीं करते  … शब्दों में वह भी सामने आना चाहिए जो सच्चाई हो   … कड़वा हो पर सच हो   …
‘बोली की गोली’ कॉलम में आज हम व्यंग्य के रूप में एक बड़ा दिलचस्प कहानी ले कर आए हैं. कहानी है जिला मुख्यालय से महज 22 किलोमीटर की दूरी की, महज एक गड़क ब्रिज क्रॉस कीजिए और बाँध के किनारे किनारे पहुँच जाएंगे ठंढी हवाओं के बीच बकरी वाले बाबू के कार्यालय के करीब।
बाबू उस कार्यालय में पोस्टेड थे, इसके पूर्व और अभी वर्तमान में जहाँ भी गए चर्चा में हीं रहे लेकिन चर्चाओं  में बागली भारी होता भी तो लाजमी है कुर्सी की चाहत पूरी होती रहती है.
बकरी जी हाँ सही समझे बकरा वाली बकरी/ बाबू के रथ के सामने आ गयी, कुर्सी है तो वाहन रथ से कमजोड़ तो न ना होगा। बाबू को गुस्सा है बकरी को ले गए रथ के पीछे लाद, बकरी के स्वामी बेचैन हुए तो जानकारी मिली बकरी तो बंदी है.
एक नेता जी का साथ मिला स्वामी को बकरी की फिरौती की रकम तय हुई तीन सौ. बकरी के स्वामी ने 250 फिरौती दे बकरी को करा  लिया रिहा और ख़ुशी ख़ुशी दूसरे दिन की दिहाड़ी कमाने के लिए रात में भूखा शायद सो गया इस उम्मीद में अगले दिन दिहाड़ी आ  ही जाएगा।
नेता जी ने पंचायत्ती तो कर दिया पर अगले दिन फिर नेता जी पैरवी में पहुंचे तो नेता जी को लेना का देना पर गया. फरियादी  के सामने ही नेता जी को 50 बकाया देने को कहा गया. नेता जी ने अपनी प्रतिष्ठा  बचाने के लिए खुद के बगली से निकाल दिया फिर सुनी गई फरियाद, बाबू आखिर बड़ा बाबू जो थे उक्त स्थान के 22 किलोमीटर बैक आ कर तीन जोड़ कर 25 पर फिर है विराजमान
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