मुजफ्फरपुर में लगातार हो रहे अपराध पर लगाम कैसे ? जाने क्राइम Chronology ? 80 का दशक या ASP R.S BHATTI से J. KANT का सफर

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मुजफ्फरपुर में अपराध की बात करें तो नए नए गिरोह बना अपराधी के द्वारा आपराधिक घटनाओं को अंजाम दिया जाता रहा है. बात 80 से 1998 तक की करें तो छोटे छोटे गिरोह सड़क पर नजर नहीं आते थे, छोटे गिरोह और पनपने नहीं दिया जाता था. 80 और 90 के दशक में, छोटे गिरोह पर पुलिस से नहीं लगाम लगता था, उन छोटे गिरोह को कंट्रोल बड़े बड़े गिरोह खुद कर दिया करते थे, जिस वजह से छोटी छोटी जो घटना आज के समय में हो रही है वह सामने नहीं आता था और पुलिस को बैठे बैठे राहत मिलती थी. 90 के दशक के बाद कुछ बड़े गिरोह पनपे थे तो तत्कालीन एएसपी राजविंदर सिंह भट्टी (वर्तमान DGP) के कार्यकाल में बैंक लूटेरा गिरोह और फिर कई छोटे गिरोह को पर ठोस कार्रवाई हुई जिससे अपराध पर लगाम लगते चले गए
जब जब हुआ खींचातानी या खानापूर्ति तब तब बढ़ा अपराध 
मुजफ्फरपुर के अपराध में एक बात अक्सर सामने आयी है, जब जब पुलिस पदाधिकारिओं में खींचातानी अंदरूनी हुई उसका खामियाजा थानों में केश रिपोर्टिंग की संख्या बढ़ता दिखा. आपसी कॉर्डिनेशन की कमी आयी तो अपराध के डिटेक्शन प्रभावित हुए. डिटेक्शन प्रभावित हुए तो थाना स्तर से खानापूर्ति की तस्वीर सामने आती रहती है.
इन सब के पीछे एक बड़ा वजह ये भी है वरीय अधिकारी से थाना स्तर से बहुत सूचना छुपाई जाती है. वरीय अधिकारी की बात करें तो डीएसपी, एसएसपी स्तर के अधिकारियों को साफ़ तस्वीर नहीं दिखाई जाती थाना स्तर से और फिर अपराध नियंत्रण के लिए वरीय स्तर पर काम कर रही टीम को थाना से सही सहयोग नहीं मिलता।
रिपोर्ट “अरुण श्रीवास्तव
थाना स्तर से एक नहीं दो नहीं तीन नहीं पांच पांच मामले में खुलासा नहीं होता। हद तो ये है एक मामला के बाद दूसरी घटना होती है और थाना स्तर से पहली घटना भूल कर दूसरी घटना पर लगने की बात की जाती है. जवाब भी जान ही लें : “जय हिन्द सर  …. सर  … सर  लगे हुए है बढ़िया पदाधिकारी को केश दिए है” यानी आइओ बना दिए और और कोतवाल का कार्य पूर्ण। मुजफ्फरपुर में एक थाना में क्षेत्र में पिछले कुछ माह में आधा दर्जन कांड का खुलासा नहीं होना इस बात का तस्दीक करता है, कुछ ऐसे कोतवाल हैं जिनके सामने डीएसपी का आदेश मानो बच्चे को खिलौना खरीदने के लिए पुचकार कर खरीद नहीं करना खिलौना
होली आते ही पलाश के फूल जैसे खिलने लगते है. उसी तर्ज पर अपराध बढ़ता है अधिकारिओं के ट्रांसफर के बाद 
90 के दशक के बाद आए जिला में ASP वर्तमान में सूबे के डीजीपी राजविंदर सिंह भट्टी और बैंक लूट के एक बड़े गिरोह का सफाया करते हुए कई छोटे छोटे गिरोह पर लगाम लगा दिए, वक्त के साथ जिला के पुलिस कप्तान के रूप में नैय्यर हसनैन खान, आर के सिंह, अमित लोढ़ा, रत्न संजय, सुधांशु कुमार, सुनील कुमार, विवेक कुमार, मनोज कुमार के कार्यकाल के दौरान अपराधी को पुलिस क्या होता है ये एहसास कुछ कुछ दिनों पर दिख जाता रहा. अपराधी अगर गोली चलाते हैं तो पुलिस भी जवाब देती थी उसी तर्ज पर जिससे आपराधिक घटनाओं में लगाम रहता था.
हाल में चार वर्ष में प्रवेश कर जिला से विदा हुए एसएसपी जयंत कांत का कार्यकाल में अपराधी जेल जो गए वह बाहर आने से डरते रहे उसके पीछे मुख्य वजह ये रहे अपराधी अपना खौफ जतना में क्या दिखाया करते, उससे कहीं अधिक अपराधियों में पुलिस का खौफ पैदा किया गया था, जयंत कांत के कार्यकाल में भी शुरुआती दौर की बात करें या कार्यकाल में अंतिम दिन तक थानेदारों के द्वारा कुछ मामले का खुलासा नजर आता था,
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सिंगल मैन इन्वेस्टिगेशन के साथ जयंत कांत ने अपनी जो टीम को बनाया था डीआईयू और एसआईटी के साथ जिला सर्विलांस की टीम एक साथ जयंत कांत के द्वारा दिए गए टास्क का फलाफल देते थे. जयंत कांत अपने कार्यकाल में हर कोतवाल को एक एक गिरफ़्तारी पर तफ्तीश करते थे, बेगुनाह जेल न जाए और दोषी जिस लायक है उसके खिलाफ वैसी कानूनी कार्रवाई से पीछे नहीं रहे. ये बात अलग है उनके कार्यकाल में जो काम नहीं करते वह भी कोतवाल तस्वीरों में नजर आते थे कामयाबी के पाठशाला में
वर्तमान समय में जिला में राकेश कुमार एक बेहतर पुलिस कप्तान के रूप में जिला में पदस्थापित हैं. एक बेहतर टीम वर्क को मिलना चाहिए इसमें उनका साथ देने में कई कोतवाल पिछड़ रहे हैं. जिला में वरीय अधिकारी की बात करें तो सरैया अनुमंडल, नगर, पश्चिमी में डीएसपी भी कर्मठ हैं, बस जरूत है एसएसपी से डीएसपी तक को थानेदारों के कर्मठता के साथ का,
जिला में कई घटना अनसुलझा रहा उसके पीछे मुख्य कारण अब तो समझा जा सकता है 
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