आप मुजफ्फरपुर में हैं तो हो जाइये सावधान जनाब, जी हाँ ऑफिस टाइम के बाद होता यहाँ थाना बंद, अन्य सरकारी कार्यालय के तर्ज पर थाना में नहीं होता काम. जिला के पुलिस कप्तान हों ये रेंज वाले आईजी किसी का नहीं चलता थाना के सामने कोई आदेश. अधिकारी पर भारी है दरोगा और इंस्पेक्टर, तत्कालीन आईजी गणेश कुमार के द्वारा जिला में थाना बंदी के हालत हो देखते हुए पहल की गयी थी, तब बहुत हद तो थाना बंदी पर लगाम लगा था, और आम पीड़ित फरियादिओं को मिली थी राहत

सरकारी कार्यालय में तर्ज पर चल रहे थाना की बात करें तो शहरी क्षेत्र ही नहीं जिला के सभी थाना का कमोबेश यही हाल है. थाना के दहलीज को पार कर जब कोई फरियादी पहुँचते हैं तो उनका फरियाद तब ही सूना जाता है जब बड़ा बाबू होंगे, बड़ा बाबू यानि कोतवाल जिसे थाना अध्यक्ष और SHO भी कहते हैं, भले ही थाना में O.D पदाधिकारी की तैनाती चौबीस घंटे में अलग अलग ड्यूटी बाट कर चेहरे बदल जाते हैं. O.D में मौजूद पदाधिकारी हो या फिर मुंशी फरियादी का आवेदन तक लेने से परहेज करते हैं, रिसीविंग तो दूर की बात है, जवाब होता है मुंशी का, बड़ा बाबू नहीं हैं कल 11 बजे आएं, सुबह में फरियादी पहुंचा तो बड़ा बाबू गस्ती में हैं, फिर आना होगा, जिला में हर क्षेत्र में अलग अलग डीएसपी के साथ जिला के पुलिस कप्तान एसएसपी मौजूद हैं, जिला में आईजी मौजूद हैं अगर कोई फरियादी उन अधिकारीयों तक पहुँच गया तो फिर मुंशी से ले कर कोतवाल तक के कोपभाजन के शिकार फरियादी होते हैं … शब्द ऐसे आते है कि “गए थे ***के यहाँ” क्या हुआ फिर तो हमारे पास आवेदन आया, बिहार में नीतीश कुमार कितना भी दावा कर लें लेकिन तंग हक़ीक़त ये है कि आज भी आम जनता को थाना में जलील होना होता है