मुजफ्फरपुर के औराई प्रखंड में सुशासन की बही गंगा – “व्यवस्था” के गाल पर करारा “तमाचा” योजनाओं का मृत सज्या ग्रामीणों का सहारा 

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Report : “उषा देवी” औराई
मुजफ्फरपुर के औराई प्रखंड के एक नहीं दो नहीं सैकड़ो गांव तक पहुंचने के लिए चचरी पुल ही एकमात्र सहारा बना है  … दो दर्जन से  अधिक चचरी पुल इस इलाके में रहने वाली एक बड़ी आबादी के लिए किसी लाइफ लाइन से कम नहीं है…. ये लाइफ लाइन ऑक्सीजन पर भी जाता है और फिर भेंटीलेटर पर दम तोड़ता है और फिर पुनः जन्म भी होता है  …
यक़ीनन आप को ये मजाक लग रहा होगा लेकिन ये हक़ीक़त है औराई के ग्रामीणों का हर वर्ष ग्रामीण खुद से करीब दो दर्जन से अधिक पूल का निर्माण बाँसो के सहारे करते है  …. बाढ़ आता है  … पहले पूल जर्जर होता है और फिर टूट कर तेज धाराओं में बह जाता है  … बाढ़ के जाते ग्रामीण फिर बांस के पूल का निर्माण करते हैं और फिर शुरू होता है बांस के सहारे जिंदगी के कदम  …  इसके सहारे ही यहां की दर्जनों पंचायत एक दूसरे से आजादी के कई दशक के बाद भी जुड़े हुए हैं….. हालात ऐसे हो गए हैं कि अभी इलाके के लोग जनप्रतिनिधियों को भी गुहार लगाने से करने लगे हैं परहेज  ….
औराई की जनता अब इसे व्यंग्य के रूप में लेने लगी है और अपनी जिंदगी को उसी बांस के सहारे जीने को विवश है जो बांस सरकारी योजनाओं का मृत सज्या बना गया है  ..
“व्यवस्था” के गाल पर करारा “तमाचा” है यह चचरी पूल
मुज़फ़्फ़रपुर जिला अन्तर्गत औराई प्रखण्ड के धरहरवा पंचायत स्थित है यह चचरी पुल
रामबाग के लोगों का अपने मोहल्ले से बाहर निकलने का एकमात्र रास्ता
सिर्फ इतना ही नही,धरहरवा से घनश्यामपुर,मधुवन,राज खंड,भैरव स्थान,प्रखण्ड मुख्यालय औराई और आगे तक जाने का सबसे नजदीकी रास्ता
सड़क बने वर्षों हो गए,लेकिन इस जगह (फुलवरिया घाट) पर पुल न होने की वजह से साल में छः महीने इस सड़क का उपगोग बेहद सीमित हो जाता है   …..

पिछले 10 वर्षों में कई बार इंजीनियर आए,स्पॉट भ्रमण हुआ,मापी हुई,फोटोग्राफी हुई,भाषणबाजी हुआ  … सिवाय पुल निर्माण के सब कुछ हुआ  …. जनप्रतिनिधियों ने खबरों के लिए फोटो शेषन कराया और कुछ नहीं नहीं   ….
जब रहा नही गया तो कुछ लोग आगे आएं   ….
सबने कमर कसा,बाँस,रस्सी-कांटी,श्रमदान हुआ और आज चचरी पुल बनकर तैयार हो गया  ….. अब ग्रामीणों के चेहरे चहक उठे  ….
किसी से कोई शिकायत नही है  … लाजमी है सुनता भी कौन है ?
ग्रामीणों को अब याद आ रहा है वो मंजर….
एक दशक से अधिक हो गए जब इसी गाँव के कुछ “सरफिरे” लड़कों ने गाँव वालों के सहयोग से NH77 से धरहरवा को जोड़ने वाली मुख्य सड़क पर बसतपुर में ऐसा ही पुल बना दिया था  … तब क्रांति जमीन पर आ गई थी   ….
व्यवस्था की अनदेखी की आग सीने में ही धधक रही है  ………
तब पुल पर बोर्ड लगा था:-
“अपना गाँव,अपना पुल।
चलेंगे सिर्फ अपने लोग।।
न नेता,न अधिकारी।।।”
इस बार ऐसा कोई बोर्ड नही लगा है।
अब सबको निमंत्रण है:-
आइए,हमारी बर्बादी और अपनी बेशर्मी का तमाशा देखिए।।
और दाँत निपोर कर मुस्कुराइए :-
आप बिहार में हैं।।।
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