“बोली की गोली” में ले कर आए हैं सच्ची कहानी एक बार फिर … एक जुमला आप ने अक्सर सुना होगा “पूत के पाँव पालने में दिख जाते हैं” जी हाँ हम बात कर रहे है राजगीर ट्रेनिंग कर जिलों में गए PSI की …. उत्तर बिहार के एक बड़े जिला में इन दिनों दो PSI जोड़ी ने कमाल कर दिया है … कमाल ऐसा कि बिहार के आर्थिक अपराध इकाई या निगरानी विभाग के लिए ये उस वक़्त बोझ बन जाएंगे जब ये कोतवाल बनेंगे … जी आप सही समझ रहे हैं … PSI अपने ट्रेनिंग कार्यकाल में ही लखपति बन रहे हैं तो समझा जा सकता है जब तक ये कोतवाल होंगे तो हश्र क्या होगा …
उक्त जिला में एक हाई प्रोफाइल हत्या होती है … तफ्तीश के कड़ी में कुछ पुराने कोतवालों को लगाया गया … उनके द्वारा कुछ 4 संदिग्ध को उठाया गया … संदिग्ध काफी दिन पुलिस अभिरक्षा में बैठे रहे … इस बीच कांड का खुलासा हुआ तो साहब के आदेश आया उन लोगों को बाइज्जत रिलीज किया जाए … अब थाना में तो कोतवाल मालिक … हाजात भी ऐसा की जहां कोतवाल नहीं बैठते … रिलीज शुल्क के डिमांड पर परिजन आक्रोशित हुए और फिर जम कर हंगामे के बीच बगैर शुल्क के छूटे … कोतवाल साहब के पीएसआई की भी नहीं चली … लेकिन PSI काल में इन पूतों के पाँव पालने में दिख रहे है …किसी को लाना और फिर लेनदेन पर रिहाई .. हद तो ये है शराब ऐसे मामले की जवाबदेही से लबालब ये लोग इस खेल में शामिल हैं … पकड़ो छोड़ो का आज का मामला भी अजीब है … यानी रविवार को दो या तीन लोग थाना लाए गए और चल रहा है खेल … ऐसे में आने वाले दिनों में EOU और निगरानी का बोझ बढ़ाने के लिए ये तैयार हो रहे है …वहीं खेल की जानकारी जिला में वरीय अधिकारी को भले न हो लेकिन टूटी किवाड़ इन्वेर्टर के बीच बैठने वाले को तो जरूर ही है …