मुजफ्फरपुर केंद्रीय कारा में हर वर्ष कारा का गेट रात में खुल जाता था …. अहले सुबह 3 बजकर 50 मिनट पर परम्पराओं के अनुरूप दी जाती थी अमर शहीद खुदीराम बोस को श्रद्धांजलि ….. श्रद्धांजलि में तिरहुत प्रमंडल के आयुक्त, आईजी, एसएसपी, डीएम, एसडीएम सहित वरीय जिला के अधिकारी और पत्रकार के साथ जिला के नेताओं का भागीदारी होती थी श्रद्धांजलि में … लोग शहीद खुदी राम बोस के उस सेल में जाते थे जहाँ वह अंग्रेजी हुकूमत में बंदी थे …. यहाँ माल्यार्पण के बाद फांसी स्थल पर माल्यार्पण किया जाता था … उसके बाद बाहर प्रतिमा का माल्यार्पण होता रहा है …. कोरोना काल में अब शहीद को श्रद्धांजलि में भी ब्रेक लगा … अब सिर्फ जेल अधीक्षक दोनों जेलर और अन्य जेल कर्मी ही सिर्फ कोविड प्रोटोकॉल के तहत सभी श्रद्धांजलि कार्यक्रम में हुए शामिल …..
जेल अधीक्षक राजीव कुमार सिंह श्रद्धांजलि कार्यक्रम को उसी परम्परा के तहत निभाया …. जेल अधिकारियों के साथ जेल कर्मी ने जेल में सेल और फँसी स्थल के साथ प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गुलामी के छाती पर आज़ादी की सबसे पहला धमाका करने वाले सपूत को याद किया गया ….. ……
11 अगस्त 1908को इस अमर शहीद को अंग्रेजों द्वारा फांसीदी गई थी …. जिन्हें आज़ादी की बलिबेदी पर सबसे कम उम्र में शहादत देने का गौरव हांसिल है ….
एक बार विदाई दे मां घूरे आशी, हंसी हंसी पोरबो फांसी देखबे भारतवासी… बंगाली कवि पितांबर दास की यह कविता भारत के वीर शहीद खुदीराम बोस को समर्पित हैं ….
शहीद खुदीराम बोस देश के पहले ऐसे वीर सपूतों में शूमार है जिन्हें आज़ादी की लड़ाई में फांसी दी गयी थी ….
11 अगस्त 1908 को बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर जेल में 18 साल के क्रांतिकारी बंगाली युवक का आखरी दिन था …. इसी दिन इस नौजवान के नाम के आगे अमर शहीद लग गया …. पश्चिम बंगाल के मेदनीपुर से आजादी की लडा़ई लड़ने 16 साल के खुदीराम बोस मुज़फ़्फ़रपुर आए थे … 30 अप्रैल 1908 को मुजफ्फरपुर के सत्र न्यायाधीश किंग्सफोर्ड की बग्घी पर निशाना लगाकर जोर से बम फेंकने का साहसी काम खुदीराम बोस ने किया दुर्भाग्यवश किंग्जफोर्ड उस बग्घी ने नही था और बच गया और उसकी जगह एक अंग्रेज अधिकारी की पत्नी मर गयी ….
खुदीराम पकड़े गए …. उसी अपराध के लिए अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हे फांसी की सजा सुनायी …. खुदीराम से जब उनकी आखिरी इच्छा बताने को कहा गया तो उन्होंने अपनी मातृभूमि की मिट्टी और भगवान के चरणामृत की इच्छा जताई ….
वीरो की शहादत अमर हो जाती है खुदीराम बोस सबसे कम उम्र के नौजवान थे जब उन्हें फांसी पर चढ़ाया गया था …. //////
मुज़फ़्फ़रपुर की धरती आज भी भारत के इस वीर सपूत को हर साल याद करती है और पूरे प्रशासनिक रिति रिवास से इनके शहादत दीवस को मनाया जाता था …
इस वर्ष भी शहीद खुदीराम बोस के शहादत दिवस को प्रशासनिक तरीके से मनाया गया और उनके फांसी स्थल और सेल में श्रद्धांजलि दी गयी
शहीद खुदीराम बोस आज के युवाओं के लिए प्रेरणादायक है उनकी कुर्बानी देश के युवाओं के लिए मिसाल है