बिहार में शराबबंदी के बाद कोर्ट में शराब मामले में कांडों की बढ़ती संख्या पर मामले लंबित होते जा रहा है … वही थाना स्तर पर भी कांडो की संख्या को कम करने के लिए एक नयी तरकीब निकाल लिया गया है … इन सब के बीच बड़ा सवाल ये है पुलिस के सामने साक्षी की कमी हो गयी है किसी भी बरामदगी के समय .. कोतवाल लम्बाचौड़ा एफआईआर दर्ज करते हैं लेकिन छापेमारी के दौरान उन्हें अपने ही इलाके में स्वतंत्र साक्षी नहीं मिलता …

उत्तर बिहार के एक जिला में चर्चित शराब मामले में थाना का हाल अलग है … हाल में दर्ज एक एफआईआर पर गौर करें तो दो मामले में एक ही एफआईआर दर्ज कर कांड की संख्या को कम करने का किया गया प्रयास … हद तो ये है दो मामले दो PO दो अभियुक्त के कम्पोजिट एफआईआर हुए …एक गुप्त सूचना पर तो दूसरा ETO 131612 मद्य निषेध विभाग पटना के निर्देश पर छापेमारी … एफआईआर में एक भी स्वतंत्र गवाह पुलिस को नहीं मिला … ऐसे में अभियुक्त इसका लाभ आगे उठा ले जाएंगे … शराब बंदी के पूर्व कम्पोजिट शराब की दुकान सुनने में आता था लेकिन अब कम्पोजिट एफआईआर भी दर्ज कर कोतवाल कम एफआईआर का ग्राफ बड़े साहब को दिखा देते हैं … दो अभियुक्त, दो जब्ती स्थान, दो सूचना, एफआईआर एक दर्ज कर अभियुक्तों को लाभ मिलना लाजमी है .