“बिहार जहरीली शराब” ‘सरकार ही नहीं पुलिस भी मौत के आंकड़ों से करती खेल “बोली की गोली”

pmbnewsweb
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बिहार में जहरीली शराब से हुए मौत के बाद आंकड़ा छुपाने का बड़ा खेल चलता आ रहा है, एक दो मौत पर पहले कोतवाल अपने स्तर से मैनेज करने के चक्कर में होते हैं, संख्या बढ़ी तब तक मर चुके कई लोगों का अंतिमसंस्कार हो चूका होता है, हद तो ये है हर मौत के बाद डीएसपी स्तर के पदाधिकारी मृतक के घर में रखे दवा को दिखा मौत को बीमारी से मौत बताते है, सिवान में तो हद तब हो गया जब एक डीएसपी के सामने तीन शव परे हुए थे और एक मौत ही बता रहे थे, बेगूसराय में हुए मौत के बाद एक वरीय अधिकारी जांच की बात करते रहे. वहीं इसी उत्तर बिहार में एक जिला ऐसा भी है जहाँ के मौत की भी खबर आती थी तो जिला के पुलिस कप्तान खुद आस पास के इलाके में जा कर थाना और डीएसपी को जांच के लिए कहते देखे गए जांच के लिए, इसी जिला में एक बार एक मौत के बाद तुरंत सक्रियता से मौत की संख्या नहीं बढ़ी थी और बीमार लोगों का इलाज कराया गया
छपरा में सैकड़ा के तरफ बढ़ता आंकड़ा पर लगाम लग सकता था. निचे से ऊपर तक के पुलिस महकमे के लोग शुरुआत में ही बीमार पर गए लोगों को मेडिकल सुबिधा उपलब्ध करा दिए होते, आंकड़ों के खेल के दौरान मौत की संख्या बढ़ती चली गयी, मौत की संख्या ही नहीं बढ़ी, पुलिस के खामोसी के दौरान कई लोगों के शव के अंतिम संस्कार हो गए, अंतिम संस्कार हो चुके मृतकों का सांख्य मौत के आंकड़ों में नहीं शामिल हो रहा. बात छपरा सिवान या बेगूसराय की नहीं, पूर्व में समस्तीपुर, और वैशाली में भी आंकड़ों को बचाने के चक्कर में कोतवाल सक्रिय दिखे थे
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