व्यंग्य रचनाएं हमारे भीतर गुदगुदी ही पैदा नहीं करतीं बल्कि हमें उन सामाजिक वास्तविकताओं के आमने-सामने भी ला खड़ा करती हैं जिनसे हम आए दिन बावस्ता होते हैं ….. “बोली की गोली” ‘चुनावी चिकोटी’ व्यंग्य लेखन में ले कर आए हैं राजवाड़ा वाले चुनावी खेल की … छोटे वाले नेता जी पहले प्रीपेड सीम के तहत ऊपर वाले कुर्सी और बीच वाले कुर्सी को चार्ज करते थे लेकिन वक़्त ऐसा करवट बदला कि इस बार चुनावी समर में छोटकू नेता जी को प्रीपेड करने के लिए चार्ज का मौका नहीं मिला … अब जनता ही ऊपर वाले कुर्सी और बिचला वाला कुर्सी को अपने मताधिकार से चार्ज कर कुर्सी तक पहुंचा देंगे

बड़े मियां तो बड़े मियां छोटे मियां …. इस जुमले को चरितार्थ कर देंगे छोटकू नेता जी … नेता जी राजवाड़ा के अपने क्षेत्र का टेंडर लेने को तैयार हैं .. ऊपर वाले कुर्सी और मध्यम कुर्सी पाने के सपनो के साथ दंगल में उतरने वालों से अपने क्षेत्र का टेंडर लेने लगे हैं कि हमारे क्षेत्र में आप को ही कुर्सी दिलाने के लिए एक जुट कर रहे हैं जनता को …. लाजमी है अपने क्षेत्र में खुद छोटकी वाला कुर्सी मिले न मिले लेकिन टेंडर दूसरे ऊपर वाले कुर्सी और बीच वाले कुर्सी दिलाने का टेंडर ले कर बल्ले बल्ले हो जाएंगे … माना जा सकता है जो पहले एक या दूसरे पक्ष से सीम चार्ज करने वाले अब एक नहीं कई लोगों से टेंडर ले कर अपना एमबी बुक फूल कर लेंगे ..